आजादी के 77 साल बाद भी अंतिम संस्कार के लिए अर्थी लेकर गुजरना पड़ा 2 फीट पानी से
भीलवाड़ा: भीलवाड़ा जिले के करेड़ा क्षेत्र में आज़ादी के 77 वर्ष बाद भी चैनपुरा, नारेली और शिवपुर ग्राम पंचायत क्षेत्रवासी एक व्यवस्थित श्मशान घाट से वंचित हैं। इन पंचायतों के लिए निर्धारित श्मशान भूमि की बदहाली ने हाल ही में एक ऐसा दृश्य सामने ला दिया, जिससे ग्रामीणों को गुस्से और बेबसी से भर दिया।
जहां भीलवाड़ा जिले के करेड़ा तहसील की नारेली पंचायत के पिपलिया गांव निवासी 80 वर्षीय गंगा देवी रावत के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार के लिए जब गंगा देवी की अर्थी को उनके परिवारजन कंधा देकर शमशान घाट की तरफ आगे बढ़ने लगे तब परिजनों और अंतिम यात्रा में शामिल ग्रामीणों को बरसात से भरे 2-2 फीट पानी से गुजरना पड़ा। श्मशान घाट के रास्ते के चारों ओर दो से तीन फीट पानी भरा होने के कारण अर्थी को श्मशान भूमि तक ले जाना संभव नहीं था जहां शमशान घाट के पास मजबूरन ग्रामीणों को पानी में खड़े होकर अंतिम संस्कार करना पड़ा। इस अमानवीय स्थिति ने शासन-प्रशासन की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया।
जहां नारेली गांव के रूप सिंह रावत का कहना है कि बारिश के मौसम में नारेली गांव के पास का तालाब भरने से श्मशान भूमि भी जलमग्न हो जाती है। जहां शमशान के रास्ते से पानी की उचित निकासी नहीं होने के कारण रास्ते में जगह-जगह पानी भर जाता है वहीं शमशान घाट पर मूलभूत सुविधा के रूप में न छाया के लिए टीन शेड, न बैठने की व्यवस्था है जहां ग्रामीणों द्वारा बार-बार शिकायत करने पर भी कोई समाधान नहीं हुआ।
वही ग्रामीण किशोर सिंह ने प्रशासन पर खिलवाड़ का आरोप लगाते हुए कहा कि"श्मशान घाट" सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं है, यह आस्था और संस्कार का स्थल है। यहां पानी भरना और संस्कार में बाधा आना धार्मिक भावनाओं का अपमान है।"तीनों पंचायतों के ग्रामीणों ने संयुक्त रूप से चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही स्थाई समाधान नहीं किया गया, तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे,अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अगर हमारी आवाज़ अनसुनी की गई, तो आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ेगा।"वहीं ग्रामीणों ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि"सरकार गांव-गांव विकास के दावे करती है, लेकिन श्मशान घाट जैसे संवेदनशील स्थल पर एक भी मूलभूत सुविधा नहीं है। यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।"


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