नागौर जागरूक| जिले के मूण्डवा पंचायत समिति के सैनणी गांव निवासी कर्नल शिवजीसिंह राठौड़ ने रविवार शाम को अंतिम सांस ली। वे 101 वर्ष के थे। उन्होंने विश्व युद्ध सहित कई सैन्य लड़ाइयों में दुश्मनों से लोहा लिया था। कर्नल राठौड़ की लगातार चार पीढ़ियां भारतीय सेना में ऑफिसर के रूप में सेवाएं दे रही हैं। कर्नल राठौड़ का आज उनके पैतृक गांव सैनणी में अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनके निधन का समाचार सुनकर गांव सहित पूरे क्षेत्र के लोग शोक की लहर छा गई।
प्रथम युद्ध में पिता तो द्वितीय में खुद कर्नल राठौड़ ने लड़ी जंग-
कुशल योद्धा रहे कर्नल राठौड़ का जन्म सेनणी गांव में 8 जनवरी 1922 को हुआ। राठौड़ के पिता सरदार सिंह चांदावत की पहचान जोधपुर रसाला रेजिमेंट के बहादुर योद्धा के रूप में थी, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेते हुए अदम्य साहस का परिचय देकर इसराइल के हाइफा शहर में ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी थी। वहीं कर्नल राठौड़ ने द्वितीय विश्व युद्ध में ईरान, ईराक, मिश्र व सीरिया जैसे देशों में ब्रिटिश सरकार की ओर से लड़ाई लड़ी।
कराची में हुई पहली पोस्टिंग
कर्नल राठौड़ 1941 में कोटा उम्मेद इन्फेंट्री रेजीमेंट में सैकंड लेफ्टिनेंट के पद से सेना में भर्ती हुए तथा सन् 1942 में कराची (पाकिस्तान) में तैनात हुए। इसी रेजीमेंट से द्वित्तीय विश्व युद्ध में भाग लिया तथा बसरा (इराक) अबादान (ईरान) कैरो (मिश्र) अल्लेपो, हमा, होम्स (सीरिया) में अनेक महत्वपूर्ण सामरिक स्थानों पर तैनात होने के पश्चात 1946 में वापस लौटे। सन् 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद 1949 में पाकिस्तान के आक्रमण के समय कर्नल ने पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर में अनेक जगहों पर अद्भुत रण कौशल का परिचय दिया। 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय अरुणाचल प्रदेश में तैनाती के बाद विषम परिस्थितियों में भारतीय सेना की चौकियों को बचाया। 1965 में राष्ट्रपति भवन में सुरक्षा यूनिट के मुख्य कमांडिंग अधिकारी के रूप में तैनात रहे।
पाक चौकियों पर जमाया था कब्जा
सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध में कर्नल राठौड़ ने रायचंदेवाला (जैसलमेर) चौकी पर कमांडिंग लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर तैनात रहते हुए पाक सेना को खदेड़ कर पाकिस्तान की चौकियों पर कब्जा किया, जिसके लिए कर्नल की यूनिट को भारत सरकार ने 2 वीर चक्र, सेना मेडल तथा 5 वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया। सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में कर्नल ने नसीराबाद से सेंट्रल कमांडेड के रूप में सेवाएं दी। सन् 1967 से 1972 में नसीराबाद सेना भर्ती बोर्ड में सेवा देते हुए हजारों युवाओं को सेन्य प्रशिक्षण दिया।
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