पंजीयन से लेकर जांच तक घंटों इंतजार, एमसीएच में प्रसूता महिलाओं की हालत बदतर
राजस्थान मेडिकल रिलीफ सोसायटी के पूर्व सदस्य मोहम्मद हारून रंगरेज (MHR) ने जताई अव्यवस्थाओं पर चिंता, उठाई आवाज
भीलवाडा। (पंकज पोरवाल) जिले के सबसे बड़े महात्मा गांधी अस्पताल में उपचार के लिए आने वाले मरीजों को अव्यवस्थाओं का सामना करना पड़ रहा है। पर्ची कटवाने से लेकर डॉक्टर को दिखाने और दवा लेने तक हर चरण में मरीजों को लंबी लाइनों से गुजरना पड़ रहा है। अस्पताल में सुबह से भीड़ उमड़ने के बावजूद पंजीयन काउंटरों की संख्या कम होने के कारण मरीज घंटों तक लाइन में खड़े रहते हैं। हालत यह है कि कई बार दोपहर तीन बजे तक आउटडोर बंद होने के बावजूद कई मरीजों की बारी ही नहीं आ पाती और उन्हें निराश होकर अगले दिन फिर से लौटना पड़ता है। साधारण जांचों की बात करें तो खून और मूत्र जैसी रिपोर्टें अगले दिन उपलब्ध होती हैं, जिससे मरीजों का दो-दो दिन अस्पताल के चक्कर में गुजर जाता है। वहीं सोनोग्राफी, सीटी स्कैन और एमआरआई जैसी जांचों के लिए एक-एक महीने बाद की तारीखें दी जा रही हैं, जिससे गंभीर मरीज भी समय पर राहत से वंचित हो रहे हैं। इधर, एमसीएच अस्पताल की स्थिति और अधिक चिंताजनक है। डिलीवरी के लिए आने वाली प्रसूता महिलाओं के परिजनों के बैठने या साथ रहने की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण महिलाएँ प्रसव पीड़ा में चीखती-चिल्लाती दिखाई देती हैं। पीड़ा से कराहती महिलाओं को संभालने के लिए न महिला स्टाफ पर्याप्त है और न ही उनके साथ आई महिलाओं को उनके पास बैठने दिया जाता है। इसके साथ ही प्रसूता वार्ड में साफ-सफाई की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है, जिससे स्वास्थ्य जोखिम बढ़ रहा है। राजस्थान मेडिकल रिलीफ सोसायटी के पूर्व सदस्य मोहम्मद हारून रंगरेज (डभ्त्) ने इन अव्यवस्थाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि भीलवाड़ा जैसे अहम जिले में सरकारी अस्पताल की यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि पंजीयन काउंटर बढ़ाने, जांच समय कम करने, गंभीर मरीजों को प्राथमिकता देने और एमसीएच अस्पताल में प्रसूता महिलाओं की सुविधा एवं सुरक्षा सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अस्पताल प्रशासन को मरीजों की पीड़ा को समझते हुए शीघ्र सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए। एमएचआर ने सरकार एवं चिकित्सा विभाग से मांग की कि महात्मा गांधी अस्पताल और एमसीएच इकाई में व्यवस्थाओं को दुरुस्त किया जाए, ताकि आमजन को समय पर इलाज मिल सके और प्रसूता महिलाओं को मानवीय व सुरक्षित वातावरण प्रदान किया जा सके।


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