भीलवाड़ा जिले के मांडल में दीपावली जैसे ही आज मनाया जायेगा रंग तेरस का त्यौहार, शाम को होगा नाहर नृत्य

एक ऐसा नृत्य जो मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए 409 साल पहले  शुरू किया गया था। वह आज भी अनवरत रूप से जारी है इस नृत्य की खासियत यह है कि यह साल में केवल एक बार राम और राज के सामने ही प्रस्तुत होता है।

मांडल@भीलवाड़ा जागरूक|| राजस्थान के भीलवाडा जिले के मांडल कस्बे में  मुग़ल बादशाह शाहजहा के मनोरंजन के लिए किया गया नाहर (शेर) नृत्य प्रतिवर्ष होली के बाद रंग तेरस के दिन शाम को होने वाला यह नाहर नृत्य अब तो मांडल कस्बे का प्रमुख त्यौहार बन चूका है  । केवल राम और राज के सम्मुख ही पेश किया जानेवाला यह नाहर नृत्य देश में अपनी तरह का अनूठा नृत्य है। पारम्परिक वाद्य यत्रो के धुनों के बीच पुरूष अपने शरीर पर रुई लपेट कर शेर का स्वांग रच नृत्य करते यह कलाकार।

           चार सो नो साल पहले वर्ष 1614  मे भीलवाड़ा जिले के मांडल गांव में मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने उदयपुर जाते समय मुग़ल बादशाह शाहजहा ने मांडल में पड़ाव किया था। उस दोरान उनके मनोरंजन के लिए शुरू किये गए नृत्य की विरासत को आज भी संभाले हुए है। यह नृत्य वर्ष में एक बार वह भी केवल राम और राज के सम्मुख ही होता है।

           इस नृत्य को लेकर राजस्थान लोक कला केंद्र मांडल  के अध्यक्ष रमेश बूलिया कहते हैं की -
यह नाहर नृत्य समारोह नरसिंह अवतार का रूप है 1614 ईस्वी में बादशाह शाहजहां के समय से चला आ रहा है शाहजहा जब मेवाड़ छोड़कर वापस दिल्ली जा रहे थे उस समय माण्डल गांव वालों ने अपने नरसिंह अवतार का प्रदर्शन कर शाहजहा को खुश किया था । इस बार हम 410 नाहर नृत्य मना रहे हैं । आज यह त्यौहार मनाया जाएगा । यह त्यौहार मांडल कस्बे के लिए दीपावली से भी बढ़कर त्यौहार है। आज के दिन हमारी बहन बेटियां दामाद सभी गांव आते हैं और भाईचारे के बहुत बड़ी मिसाल है । आज सुबह से ही रंग खेलते हैं जहा दिन मे बेगम और बादशाह की सवारी निकलती है यह नृत्य केवल राम और राज के सामने ही होता है। नाहर बनाने के लिए कलाकारों पर रुई का चौला पहनाकर शेर के जैसे दो कानों पर सिंग लगाए जाते हैं। हर बार चार कलाकार नाहर बनते हैं।

वही नाहर नृत्य करने वाले कलाकार जितेन्द्र कुमार मांटोलिया कहते हैं -
मैं बरसों से शरीर पर रुई लपेटकर शेर का स्वांग कर यह नाहर नृत्य करता रहा हूं हम बरसों पुरानी परंपरा को निभा रहे हमारे शरीर पर 4 किलो रुई लपेटी जाती है सिंग लगा कर पूरा नरसिंह का अवतार बनाया जाता है। पहले हमारे दादाजी फिर पिताजी अब वर्तमान में मैं इसमें कलाकारी निभा रहा हूं। मांडल ही नहीं राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के हर व्यक्ति इस त्योहार का इंतजार करते है 

वर्तमान मे भी बिना किसी सरकारी सहायता के 400 साल से भी पुराने मांडल के नाहर नृत्य की इस अनूठी परंपरा को अब भी सहेजने की जरूरत है।